महेंद्र सिंह धोनी ने टीम इंडिया की वनडे और टी-20 कप्तानी छोड़ी दी है। हालांकि एक खिलाड़ी के रूप में टीम के लिए उपलब्ध रहेंगे। एमएस धोनी अपनी कप्तानी में टीम इंडिया को नई ऊंचाइयों पर लेकर गए। आईसीसी का ऐसा कोई भी टूर्नामेंट नहीं रहा जिसे उन्होंने टीम को न दिलाया हो। धोनी आईसीसी का हर खिताब जीतने वाले
दुनिया के पहले कप्तान हैं। मुश्किल की घड़ी में भी मैदान पर एकदम शांत रहने वाले धोनी की 'कूल कप्तानी' अब हमें देखने को नहीं मिलेगी। बर्फ की तरह ठंडे दिखने वाले धोनी ने मैदान पर कई हैरान करने वाले फैसले लिए, जिसकी वजह फैंस और विशेषज्ञों को झटके लगे। जानिए बड़े मौकों पर एमएस धोनी के वो 5 चौंकाने वाले फैसले, जिनसे टीम इंडिया ने जीत का परचम लहराया: टी-20 वर्ल्ड कप फाइनल, 2007
इस टूर्नामेंट में पहली बार टीम इंडिया की कप्तानी कर रहे एमएस धोनी ने पूरे टूर्नामेंट के दौरान ही कई चौंकाने वाले फैसले लिए थे। फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ टीम इंडिया जीत मुश्किल नजर आ रही थी। मिस्बाह उल हक बल्ले से आग उगल रहे थे। 158 के लक्ष्य का पीछा कर रही पाक टीम को आखिरी ओवर में 13 रन चाहिए थे। तभी टीम इंडिया के कप्तान एमएस धोनी ने सबको हैरत में डाल दिया और नवोदित जोगिंदर शर्मा के हाथ में थमा दी। लोग सोचने लगे कि अब तो मैच हाथ से गया। टीम इंडिया को जीत के लिए एक विकेट चाहिए था, लेकिन मिस्बाह के सामने रहते यह नामुमकिन लग रहा था। लेकिन जोगिंदर ने कप्तान धोनी के फैसले को सही साबित करते हुए तीसरी ही गेंद पर मिस्बाह को मिस्बाह को चलता कर दिया और टीम इंडिया ने इतिहास के पहले टी-20 वर्ल्ड कप पर कब्जा कर लिया। इतिहास लिखने के लिए चुना सहवाग और उथप्पा को
कहा जाता है ‘अनहोनी को जो होनी करदे वो है महेंद्र सिंह धोनी’।
इसी का उदाहरण धोनी ने टी-20 वर्ल्ड कप पहले मैच में दिया, जब भारत के सामने पाकिस्तान की टीम थी। धोनी मैच के दौरान और उससे पहले भी कई योजनाओं पर काम करते रहते हैं, जिसके बारे लोग नहीं सोचते। 2007 के वर्ल्ड टी-20 में इतिहास के इकलौते बॉल आउट के दौरान धोनी ने अकल्पनीय फैसला लिया। मगर धोनी ने इसके लिए नियमित अभ्यास के बाद लगभग हर दिन इसका अलग से अभ्यास कराया था। उसमें वीरेंद्र सहवाग और रॉबिन उथप्पा सबसे अधिक बार विकेट उखाड़ रहे थे। इसी लिए धोनी ने गेंद इन दोनों को थमाई। पाक के नियमित गेंदबाज एक भी बार विकेट को निशाना नहीं बना सके, मगर धोनी का हर तीर निशाने पर लगा। ऑस्ट्रेलिया में इतिहास रचने के लिए मांगी युवा टीम
कोई भी कप्तान ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े दौरे में अनुभवी खिलाड़ियों से भरी टीम चाहता है, क्योंकि वहां खेलना आसान नहीं रहता। लेकिन धोनी आखिर धोनी ही हैं। धोनी ने साल 2008 में ट्राई सीरीज के लिए चयनकर्ताओं से युवा खिलाड़ियों की मांग की। उस सीरीज में रोहित शर्मा, गौतम गंभीर, प्रवीण कुमार, रॉबिन उथप्पा जैसे खिलाड़ियों पर एमएस धोनी ने भरोस जताया। टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया में बड़ी सफलता हासिल की। टीम इंडिया ने तीन फाइनल वाले मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया को पहले दोनों फाइनल में हराकर टूर्नामेंट जीता। मध्यम गति के तेज गेंदबाज प्रवीण कुमार तो मैन ऑफ द सीरीज बने थे। ‘मैन ऑफ द टूर्नामेंट’ से पहले की बैटिंग फॉर्म में चल रहे युवराज से पहले आना
2011 के वनडे वर्ल्ड कप फाइनल में उन्होंने एक बार फिर सबको चौंकाते हुए खुद को ऊपर प्रमोट किया। सचिन और सहवाग के आउट होने के बाद धोनी खुद बैटिंग करने युवराज से पहले नंबर 4 पर आए। फैसला इसलिए भी चौंकाने वाला था, क्योंकि धोनी बहुत अच्छे फॉर्म में नहीं थे।
लेकिन धोनी ने गौतम गंभीर के साथ मिलकर एक और अनहोनी को होनी में बदल दिया। दोनों की साझेदारी ने मैच पर भारत की जीत की मुहर लगा दी। इसके बाद धोनी का विजयी छक्का इतिहास में अमर हो गया। टीम इंडिया ने 28 साल बाद वनडे वर्ल्ड कप फिर जीता। पूरे टूर्नामेंट में युवराज को ने 9 मैचों में 75 ओवर डाले और 15 विकेट लिए। जमकर पिट रहे ईशांत शर्मा से कराई बॉलिंग
2013 तक टी-20 और वनडे वर्ल्ड कप दिलवा चुके एमएस धोनी के नाम सिर्फ चैंपियंस ट्रॉफी का खिताब नहीं था। 2013 चैंपियन्स ट्रॉफी के फाइनल में टीम इंडिया ने इंग्लैंड को सामने जीत के लिए 130 रन का लक्ष्य रखा। बारिश के कारण मैच 20 ओवर का कर दिया। इंग्लैंड को जीत के लिए अंतिम तीन ओवरों में 28 रन चाहिए थे। तभी धोनी ने तेज गेंदबाज ईशांत शर्मा को गेंद थमा दी, जो इस मैच में तब तक 3 ओवर में 27 रन लुटा चुके थे। कु लेकिन एक बार फिर धोनी सही साबित हुए और ईशांत ने एक ही ओवर में दोनों सेट बल्लेबाज, इयोन मॉर्गन (33) और रवि बोपारा (30) को आउट कर मैच का रुख भारत की ओर मोड़ दिया। टीम इंडिया ने मैच 5 रन से जीता और धोनी के नाम आईसीसी के सभी टूर्नामेंट दर्ज हो गए।
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